गुरुकुल यात्रा
गुरुकुल नाम किसी भवन या स्थान का न होकर परस्पर रक्षा एवं विद्योन्नति
के लिए प्रतिज्ञाबद्ध गुरुशिष्य कुल का है ।
27 अप्रैल 2009
वैदिक गुरुकुल की स्थापना
परमपिता परमात्मा की अनुकम्पायुक्त प्रेरणा से 27 अप्रैल 2009 तदनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया विक्रम शुभकृत संवत २०६६, को वैदिक गुरुकुल के विचार को मूर्त रूप देने के लिए प्रथम गोष्ठी दिल्ली में आयोजित की गई । इसमें आचार्य प्रशांत, उनके सहयोगी व मित्र मंडल उपस्थित रहे। गोष्ठी में यह निर्णय लिया गया की गुरुकुल के विचार को संयोजित वैदिक काल तक है स्थापित करना है तो इसे न्यास के रूप में पंजीकृत कराया जाए। जिस के मुख्य उद्देश्य वैदिक आध्यात्मिक शिक्षा व परंपरा का रक्षण, संवहन, पुनः स्थापन व प्रचार–प्रसार है। इसी के साथ ही सैद्धांतिक दृढ़ता रखते हुए वैदिक गुरुकुल के विचार का विभिन्न प्रकार से प्रसार प्रारंभ किया।
2014-2015
भवन निर्माण
अलवर जैसे पहाड़ी क्षेत्र पर दुसाध्य निर्माण करना अनेक सहयोगियों के सद्भाव से ही संभव हो पाया है लगभग 2 वर्ष में मुख्य भवन पूर्ण हुआ
नवंबर 2013
गुरुकुल के लिए स्थान क्रय
गुरुकुल के कार्य को व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाने के लिए स्थाई स्थान की आवश्यकता प्रतीत हुई इस बीच दिल्ली व आसपास के क्षेत्र में कई मास तक अनेक संस्थाओं अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर गुरुकुल के उद्देश्यों से अवगत करा गुरुकुल के लिए आवासीय स्थान अथवा भूमि की आवश्यकता बताई गई । किंतु किन्ही कारणवश यह योजनाएं मूर्त रूप न ले पाई। अंततोगत्वा अनेक चुनौतियों व संघर्षों के उपरांत निज धन से ही नवंबर 2013 को राजस्थान के अलवर प्रांत के डडीकर गांव में गुरुकुल के लिए लगभग 5 एकड़ भूमि क्रय की गई।
१ जुलाई २०१७
गुरुकुल का आरम्भ
आषाढ़ शुक्ल, गुरु पूर्णिमा २०७४ ईस्वी संवत जुलाई से परमेश्वर की कृपा से वैदिक गुरुकुल का प्रथम एक वर्षीय सत्र प्रारंभ हुआ
Previous
Next
हमारे उदेश्य
परमपिता परमात्मा की अनुकम्पायुक्त प्रेरणा से 27 अप्रैल 2009 तदनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया विक्रम शुभकृत संवत २०६६, को वैदिक गुरुकुल के विचार को मूर्त रूप देने के लिए प्रथम गोष्ठी दिल्ली में आयोजित की गई । इसमें आचार्य प्रशांत, उनके सहयोगी व मित्र मंडल उपस्थित रहे। गोष्ठी में यह निर्णय लिया गया की गुरुकुल के विचार को संयोजित वैदिक काल तक है स्थापित करना है तो इसे न्यास के रूप में पंजीकृत कराया जाए। जिस के मुख्य उद्देश्य वैदिक आध्यात्मिक शिक्षा व परंपरा का रक्षण, संवहन, पुनः स्थापन व प्रचार–प्रसार है। इसी के साथ ही सैद्धांतिक दृढ़ता रखते हुए वैदिक गुरुकुल के विचार का विभिन्न प्रकार से प्रसार प्रारंभ किया।परमपिता परमात्मा की अनुकम्पायुक्त प्रेरणा से 27 अप्रैल 2009 तदनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया विक्रम शुभकृत संवत २०६६, को वैदिक गुरुकुल के विचार को मूर्त रूप देने के लिए प्रथम गोष्ठी दिल्ली में आयोजित की गई । इसमें आचार्य प्रशांत, उनके सहयोगी व मित्र मंडल उपस्थित रहे। गोष्ठी में यह निर्णय लिया गया की गुरुकुल के विचार को संयोजित वैदिक काल तक है स्थापित करना है तो इसे न्यास के रूप में पंजीकृत कराया जाए। जिस के मुख्य उद्देश्य वैदिक आध्यात्मिक शिक्षा व परंपरा का रक्षण, संवहन, पुनः स्थापन व प्रचार–प्रसार है। इसी के साथ ही सैद्धांतिक दृढ़ता रखते हुए वैदिक गुरुकुल के विचार का विभिन्न प्रकार से प्रसार प्रारंभ किया।
भविष्य की कार्ययोजना
1. अध्ययन अध्यापन – वैदिक गुरुकुल में वर्तमान में पूर्णकालिक आवासीय पाठ्यक्रम के 2 सत्र चल रहे हैं तो इस वर्ष से तीसरे सत्र की भी योजना है वैदिक गुरुकुल में इसी प्रकार वैदिक दर्शन व वैदिक वांग्मय के परिचय के तीन-तीन वर्ष के तीन सत्र निरंतर चलते रहेंगे प्रत्येक में 10 ब्रह्मचारी रहेंगे इसके अतिरिक्त ऑनलाइन कोर्सों की इस कोरोना काल में उपयोगिता बहुत अधिक बढ़ गई है और उपनिषदों व वैशेषिक दर्शन के कोर्स को मिली आशातीत सफलता से भविष्य में भी ऐसे ही कोर्सों के निरंतरता गुरुकुल के माध्यम से रहेगी । यह कोर्स उपनिषदों , दर्शनों व चित्त प्रसाधन की कार्यशाला व दैनिन्दिन समस्याओं के वैदिक समाधान के रहेंगे। अनुकूलता होने पर योग की कक्षाएं भी ऑनलाइन चलाई जा सकती है।
यहां तृतीय सत्र के विज्ञापन की सामग्री भी प्रयोग की जा सकती है
2. प्रकाशन – गत वर्ष कुछ मास तक वैदिक गुरुकुल का सूचना पत्र में प्रकाशित किया गया जिसको शीघ्र ही सनातन दर्शन के नाम से शोधात्मक व सूचनात्मक द्वैमासिक पत्रिका के रूप में व्यवस्थित रूप से संचालित करने की योजना है ।छः दर्शनों के भाष्य आदि , व अप्रकाशित अनेक ग्रंथों को प्रकाशित करने की योजना है।
सूची दे देनी है
3.परिसर निर्माण – गुरुकुल में भोजनालय वाचनालय अतिथि कक्ष स्वागत कक्ष का नया भवन बनकर लगभग तैयार है। भविष्य में शीघ्र ही अनुकूल साधनों की उपलब्धता होते ही पांच अन्य अतिथियों के व विद्यार्थियों के लिए 10 अतिरिक्त कक्षों के निर्माण की भी योजना है।
4. प्रचार प्रसार-सोशल मीडिया व आधुनिक संचार के अन्य साधनों के द्वारा गुरुकुल के उद्देश्य को व गुरुकुल की शिक्षाओं को जन जन तक पहुंचाने के लिए व्यवस्थित कार्य योजना है

डॉ प्रशांत आचार्य
Founder
आचार्य जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से BSc फिजिक्स 1999 में करने के उपरान्त आध्यात्मिक व राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत होकर पारंपरिक वैदिक शिक्षा को ग्रहण करने का प्रयास किया । इसी क्रम में विभिन्न गुरुकुलों, आश्रमों व धार्मिक संस्थाओं में संस्कृत व्याकरण, वैदिक शास्त्रों का अध्ययन व विभिन्न परम्पराओ में योग व ध्यान साधना का अभ्यास किया ।