सांख्य दर्शन
५.५ सांख्य दर्शन-परिचय—कपिल महर्षि प्रणीत सांख्य दर्शन में कुल छ: अध्याय हैं और सूत्रों की कुल संख्या ५२६ है।
प्रथम अध्याय में त्रिविध दु:खों से निवृत्ति रूप मोक्ष की अत्यन्त पुरुषार्थता, उसकी प्राप्ति के लिए दृष्ट साधनों की अयोग्यता, बन्धन का स्वभाव या निमित्त से होना, इस विषय पर विविध मत प्रस्तुत किये हैं। बन्धन का कारण प्रकृति पुरुष का संयोग, प्रकृति-विकृति के स्वरूप का वर्णन और प्रकृति जगत् का उपादान कारण। सत्त्वादिगुणों का साधर्म्य-वैधर्म्य और उनके कार्यों का लक्षण दिया गया है।
द्वितीय अध्याय में प्रकृति ईश्वर की कृति कैसे है। महत्तत्त्व और पञ्च तन्मात्रों तक के पदार्थ जीवात्मा के कार्यों के सम्पादन के लिए ही हैं, इन्द्रियों का अतीन्द्रियत्व, वृत्तिमत्त्व, मन की सभी इन्द्रियों में प्रधानता और अन्त:करण के गुणों में बुद्धि की प्रधानता बतलाई गई है।
तृतीय अध्याय में जीवात्मा का कर्म संस्कारों के आधार पर सूक्ष्म शरीर के साथ दूसरे शरीर में गमन, माता-पिता से उत्पन्न पञ्चभूतात्मक स्थूल शरीर, देह में चेतना, प्रकृति पर ईश्वर की आधीनता, ईश्वर की सर्वज्ञता, सर्वकर्तृता और जीवन्मुक्ति इत्यादि के वर्णन आये हैं।
चतुर्थ अध्याय में मोक्ष के उपदेश पर मानवमात्र का अधिकार, मोक्ष के लिए त्याग, वैराग्य, संयम आदि का अनिवार्य रूप से अनुष्ठान विषय प्रधान रूप से आया है।
पञ्चम अध्याय में अहिंसा आदि व्रतों का शुभ फल देना, ईश्वर की जीवात्मा की अपेक्षा से फल प्रदान करना, निज शक्ति से वेदों को उत्पन्न करना और उनका अपौरुषेयत्व, सत् और असत् ख्याति, सत्कार्यवाद सिद्धांत का प्रतिपादन, परमेश्वर जीव और प्रकृति की पृथक्-सत्ता का प्रतिपादन, संज्ञा-संज्ञी का नैसर्गिक समवाय सम्बन्ध। सूक्ष्म शरीर की सिद्धि, पृथिवी आदि उपादानों से जीवात्मा का शरीर में प्रवेश, शरीर निर्माण, समाधि-सुषुप्ति और मोक्ष में जीवात्मा का भोक्तृभाव और ब्रह्म सदृशभाव। समाधि आदि में मोक्ष की उत्कृष्टता, वृक्षों में जीवन का प्रसंग, इत्यादि प्रकरणों का समावेश है।
छठे अध्याय में आत्मा की देह से भिन्नता और अहंकार की युक्तता, पुरुष बहुत्व का प्रतिपादन। मनुष्य शरीर की प्रकृति की अन्य वस्तुओं से श्रेष्ठता। मुक्ति में दु:ख निवृत्ति के उपरान्त सुख प्राप्ति रूपी दो प्रकार का पुरुषार्थ। मुक्ति प्राप्ति में श्रवण-चतुष्ट्य रूपी साधनों की अनिवार्यता। प्रकृति और पुरुष के ज्ञान से अविवेक का नाश होने से मोक्ष की सिद्धि बतलाई गई है।
Overview
योग विद्या का मूल स्त्रोत क्या है ?
- योग विद्या का मूल स्रोत वेद है
- वेद के आधार पर ही विभिन्न शास्त्रकारों ने अपने अपने ढंग से योग विद्या का वर्णन किया है
- आधुनिक काल में महर्षि पतंजलि ने योग को दर्शन के रूप में क्रमबद्ध कर योग दर्शन का निर्माण किया
- योग: चित्तवृत्तिनिरोध: अर्थात चित्त की वृत्तियों को पूर्णत: रोकना योग है
मन की वृत्तियाँ कौन-कौन सी हैं?
Accordion Content
उन्हें रोकने के क्या उपाय है ?
- योगाभ्यासी व्यक्ति ही इन वृत्तियों को समझकर मन में उठने वाले विभिन्न नकारात्मक भावों (इर्षा, द्वेष, अहंकार, लोभ, मोह आदि) को रोक पाने में सक्षम होता है
- ईश्वर की सहायता से ही इन भावों का समाधान संभव है
- इन कुसंस्कारों को हटाने की विस्तृत प्रक्रिया योग दर्शन में प्राप्त होती है
जब तक इन्द्रियाँ बहिर्मुखी होती हैं, तब तक परमेश्वर का ध्यान कदापि सम्भव नहीं है।
इसलिए ईश्वर की सच्ची भक्ति के लिये योग-दर्शन एक अनुपम शास्त्र है।
पाठ्यक्रम
प्रथम विषयाध्यायः
द्वितीय प्रधान कार्य अध्याय
तृतीय प्रधान कार्य अध्याय
चतुर्थ अध्याय
प्रथम विषयाध्यायः
प्रकरण १.१ – पुरुषार्थ प्रकरण (१.१-६)
१. मंगलाचरण शास्त्र अधिकार स्थापन
२. दृष्टि साधन निषेध
३. दृष्ट निषेध दृष्टांत
४. दृष्ट निषेध हेतु
५. आनुश्रविक निषेध अथवा श्रुति प्रमाण
६. दृष्ट आनुश्रविक का अवशेष कथन
प्रकरण १.२ – बंधहेतुपरीक्षा प्रकरण (१.७-१.५४)
स्वभावबंध निषेध स्वभाव बंद (सूत्र १.७-११)
७. स्वभाव बद्धता निषेध
८. बंधता निषेध में स्वभाव नित्यता हेतु
९. अशक्य उपदेश हेतु
१०. स्वभाव का दृष्टांत
११. दृष्टांत निषेध हेतु
निमित्त योग बंध निषेध (सूत्र १.१२-१८)
१२. काल योग बंध निषेध
१३. देश योग बंध निषेध
१४. अवस्था योग बंध निषेध
१५. निमित्त निषेध हेतु
१६. कर्म बंध निषेध
१७. बंध का अन्य धर्म होने में निषेध
१८. प्रकृति निबंधन बंध निषेध
बंध प्रतिपादन (सूत्र १.१९)
१९. बंध प्रतिपादन
प्रकरण १.३ – अविवेकोच्छेद प्रकरण (१.५५-६०)
५५. बंध का हेतु (अविवेक)
५६. बंध हेतु उच्छेद कथन
५७. बंध हेतु उत्छेद प्रक्रिया
५८. अविवेक और तात्विकता
५९. वांग मात्र का निराकरण कथन
६०. अविवेक निरास साधन (अनुमान प्रमाण)
प्रकरण १.४ – प्रकृति आदि अनुमान प्रकरण (प्रासंगिक) (१.६१-६६)
प्रमेय गण (सूत्र १.६१)
६१. पंचविंशति गण
कार्य साहित्य अनुमान (सूत्र १.६२-६५)
६२. तन्मात्र अनुमान कथन
६३. अहंकार अनुमान कथन
६४. अंतःकरण अनुमान कथन
६५. प्रकृति अनुमान कथन
ताटस्थ्य अनुमान (सूत्र १.६६)
६६. पुरुष अनुमान कथन
प्रकरण १.५ – उपादानवाद प्रकरण (१.६७-८१)
उपादान सिद्धि (सूत्र १.६७-७७)
६७. उपादान स्वरूप कथन
६८. प्रकारांतर से स्वरूप कथन
६९. दोनों में उपादान ऐक्य
७०. दोनों प्रकार सार्थक
७१. कार्यत्व प्रतिपादन महत
७२. कार्यत्व प्रतिपादन अहंकार
७३. कार्यत्व प्रतिपादन समस्त
७४. कार्य व पारंपर्य उपादानता सिद्धि
७५. उपादानता कार्यत्व संबंध
७६. उपादान की कार्यत्व में व्यापकता
७७. उपादानता में श्रुति प्रमाण
उपादान का अभाव निषेध, भाव सिद्धि (सूत्र १.७८-८१)
७८. उपादान का अभाव निरास
७९. अभाव निरास में हेतु
८०. उपादेयता भाव सिद्धि
८१. कर्म उपदानता निरास
प्रकरण १.६ – मोक्ष प्रकरण (प्रासंगिक) (१.८२ – ८६)
८२. आनुश्रविक कर्म से असिद्धि (मोक्ष में)
८३. प्राप्तविवेक की सिद्धि
८४. कर्म से असिद्धि में दृष्टान्त
८५. निष्काम कर्म से भी असिद्धि
८६. विवेक मोक्ष का परम हेतु
प्रकरण १.७ – प्रमाण प्रकरण (१.८७ – १०७)
प्रकरण १.८ – सत्कार्यवाद प्रकरण (१.१०८ – १३७)
सत्कारणवाद (सूत्र १.१०८-११३)
१०८. विषय अनुपलब्धि के हेतु (आठ)
१०९. प्रकृति-अनुपलब्धि में हेतु (सौक्षम्य)
११०. प्रकृति की उपलब्धि में हेतु (कार्यदर्शन)
१११. प्रकृति की सिद्धि में शंका
११२. शंका का समाधान
११३. प्रकारान्तर से समाधान (अनागत, वर्तमान, अतीत अवस्था)
सत्कार्यवाद (अनागत अवस्था में) (सूत्र १.११४-११८)
११४. कार्य के सत् होने में दृष्टान्त, वाद स्थापना
११५. कार्य के सत् होने में हेतु (उपादान नियम)
११६. उपर्युक्त हेतु में प्रमाण
११७. कार्य के सत् होने में अन्य हेतु
११८. कार्य के सत् होने में अन्य हेतु
सत्कार्यवाद (वर्तमान अवस्था में) (सूत्र १.११९-१२०)
११९. सत्कार्य का भावयोग (उत्पत्ति सम्बन्ध) में शंका
१२०. भावयोग (अभिव्यक्ति) वर्तमान अवस्था
सत्कार्यवाद (अतीत अवस्था में) (सूत्र १.१२१)
१२१. सत्कार्यवाद की अतीतावस्था
सत्कार्यवाद परंपरा सिद्धि (सूत्र १.१२२-१२३)
१२२. विभिन्न अवस्थाओं में सत्कार्यवाद प्रक्रिया सिद्धि
१२३. प्रकारांतर से सत्कार्यवाद सिद्धि (वर्तमान अवस्था की)
कार्य कारण साधर्म्य/वैधर्म्य (सूत्र १.१२४-१२८)
१२४. कार्यत्व में कार्यत्व साधर्म्य/कार्यत्व स्वरुप कथन
१२५. कार्य का कारण से वैधर्म्य
१२६. कार्य कारण साधर्म्य
१२७. कारण गुणों का परस्पर वैधर्म्य
१२८. कारण गुणों का परस्पर साधर्म्य
सत्कार्यवाद सिद्धि (सूत्र १.१२९-१३४)
१२९. कार्यत्व सिद्धि कथन
१३०. कार्यत्व सिद्धि में परिमाण हेतु
१३१. कार्यत्व सिद्धि में हेतु (समन्वय)
१३२. कार्यत्व सिद्धि में हेतु (शक्ति)
१३३. कार्यत्व असिद्धि विराम
१३४. कार्यत्व असिद्धि निरास
सत्कार्यवाद का उपयोग (सूत्र १.१३५-१३७)
१३५. प्रकृति के अनुमान की प्रक्रिया (अनुमान कैसे करें)
१३६. मूल प्रकृति का अनुमान कथन (अनुमान किससे करे)
१३७. उपादान अभाव का निरास
प्रकरण १.९ – भोक्तृ प्रकरण (१.१३८ – १६४)
शरीरातिरिक्त पुरुष सिद्धि (प्रकृति पुरुष वैधर्म्य) (सूत्र १.१३८-१४४)
१३८. पुरुष सामान्य रूप से सिद्ध
१३९. पुरुष प्रकृति भेद कथन
१४०. भेद कथन में हेतु
१४१. भेद कथन में हेत्वन्तर
१४२. भेद कथन में हेत्वन्तर
१४३. भेद कथन में हेत्वन्तर
१४४. भेद कथन में हेत्वन्तर
पुरुष का स्वरुप कथन (सूत्र १.१४५-१४८)
१४५. पुरुष का स्वरुप कथन
१४६. स्वरुप का धर्मत्व निरास
१४७. धर्मत्व निरास में हेतु (श्रुति)
१४८. धर्मत्व निरास में हेत्वन्तर
पुरुष बहुत्व सिद्धि (सूत्र १.१४९-१५१)
१४९. पुरुष बहुत्व में हेतु
१५०. पुरुष नित्यता कथन (पुरुष के जन्म अनेक पर हर जन्म में पुरुष वही रहता है)
१५१. पुरुष नित्यता कथन
पुरुष एकत्व निरास (सूत्र १.१५२-५३)
१५२. पुरुष बहुत्व में हेतु
१५३. पुरुष बहुत्व में हेतु
अद्वैत श्रुति निरास (सूत्र १५४-
१५४. जातिपरक ऐक्य बहुत्व में बाधक नहीं
१५५. जातिपरक ऐक्य दृष्टि कथन
१५६. जातिपरक ऐक्य दृष्टि योग्यता
१५७. पुरुष बहुत्व में दृष्टान्त
१५८.
द्वितीय प्रधान कार्य अध्याय
सृष्टि का प्रयोजन प्रयोजन
मोक्ष की योग्यता
सृष्टि प्रक्रिया प्रकरण
दिक्-काल आरम्भ
बुद्धि स्वरुप/वृत्ति/लक्षण
बुद्धि के कार्य
अहंकार का स्वरुप और कार्य
एकादश इन्द्रिय कथन
इन्द्रियभौतिकत्वादि निरास
एकत्व निरास
दृष्ट्रित्वादि नीरस
अंत:करण और इन्द्रिय की वृत्ति
करण प्रकरण
दृष्टान्त
३६. कारणोद्भव प्रयोजन
३७. प्रयोजन में दृष्टान्त
३८. करण-भेद
३९. इन्द्रिय गौण करणत्व
४०. प्रधान करणत्व में हेतु (अव्यभिचार)
४१. प्रधान करणत्व में हेतु (अव्यभिचार)
४२. हेत्वान्तर (संस्कारआधारत्व)
४३. हेत्वान्तर (स्मृत्यानुमान)
४४. हेत्वान्तर
४५. गौण-प्राधान्य में हेतु
४६. करण-पुरुषकर्मोपार्जित
४७. बुद्धि प्राधान्य में दृष्टान्त, वाद प्रतिवादन
तृतीय प्रधान कार्य अध्याय
- महाभूत प्रकरण
- शरीरोपादान प्रकरण
- मुक्ति साधन प्रकरण
- ज्ञान साधन प्रकरण
- बन्ध साधक प्रकरण
- व्यष्टि सृष्टि प्रकरण
चतुर्थ अध्याय
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