सांगोपांग वेदाध्ययन – त्रिवर्षीय वैदिक पाठ्यक्रम
हमनें विद्यार्थियों के हित के लिए वर्षों के तप, पुरूषार्थ से संपूर्ण वेदांगो का
सरलतम प्रमाणिक व वैज्ञानिक पाठ्यक्रम निर्मित किया है।
पाठ्यक्रम
प्रथम वर्ष
द्वितीय वर्ष
तृतीय वर्ष
प्रथम वर्ष
१. शिक्षा वेदाङ्ग
- ग्रन्थ = पाणिनीय वर्णोच्चारण शिक्षा,
- वृद्ध पाठ व दयानंदीय व्याख्या से समन्वित संस्कृत भाषा बोध,
- हिंदी /अंग्रजी से संस्कृत अनुवाद,
- संस्कृत सम्भाषण
२. कल्प वेदाङ्ग
- गृह सूत्र = पारस्कर,
- आश्वलायन गृहाश्रम संस्कार सूत्र,
- श्रौत सूत्र = संस्कार विधि से प्रक्रिया सहित,
- धर्म सूत्र = मनुस्मृति से संग्रहीत,
- आर्ष क्रम से षड् दर्शन सूत्र ग्रन्थ (मीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य, वेदांत) आवश्यक भाष्य टीकाओं सहित,
- एकादश उपनिषदों का कथा शैली से अध्यापन
इन ग्रंथों का प्रयोगात्मक विधि से आधुनिक मान्यताओं के साथ तुलनात्मक व्यावहारिक अध्यापन,
इनकी परम्परानुसार मौखिक, लिखित व व्यावहारिक परीक्षा भी ली जाती है ।
द्वितीय वर्ष
३. व्याकरण वेदाङ्ग
- ग्रन्थ – अष्टाध्यायी लघूपदेश (लगभग १६५० सूत्रों का अनुवृत्तिक्रम,सर्वप्रकरण समन्वित उपदेश ),
- शेष सूत्रों का परिशिष्ट रूप में अध्यापन,
- लघुसिद्दांत कौमुदी- प्रक्रिया ग्रंथ के रूप में दार्शनिक ऐतिहासिक ग्रंथों का व्याकरण शैली से अध्यापन जैसे वाल्मीकीय रामायण, गीता, महाभारत के प्रसंग इत्यादि ।
४. निरुक्त वेदाङ्ग
- ग्रन्थ- यास्कीय निरुक्त व निघण्टु,
- वैदिक उदाहरणों की प्रसंगानुसार व्याख्या,
- वेदों के विविध प्रकरणों का नैरुक्तिक शैली से अर्थ विचार,
- व्युत्पत्ति विद्या का विशेष अभ्यास ।
तृतीय वर्ष
५. ज्योतिष
- सूर्य सिद्धांत,
- लगध ज्योतिष मूल ग्रन्थ,
- इसके अतिरिक्त अन्य प्राचीन काल गणना,
- गणित के अन्यान्य ग्रंथों का परिचयात्मक अध्ययन ।
६. छन्द
- पिंगल छन्दशास्त्र,
- काव्य शास्त्र परिचय,
- अलंकारों का परिचय,
- विविध वैदिक छन्दों का अभ्यास,
- चतुर्वेद आर्यशाखा (आर्य साहित्य में प्रयुक्त प्रसिद्ध सूक्त) के लगभग २००० वेद मन्त्रों का वेदांगो को नियोजित करते हुए सार्थक,
- प्रयोगात्मक व वर्णात्मक अध्ययन ।
- वर्तमान में केवल प्रथम वर्षीय सत्र का संचालन हो रहा है ।
- इस पाठ्यक्रम का यह काल सांकेतिक है, इसमें छात्र की योग्यता व् आचार्य की उपलब्धता से न्यूनाधिक संभव है l
- जो लोग पूर्णकालिक समय भी दे सकते है उनके लिए अंशकालिक सामूहिक पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं ।
- अङ्गों का यह क्रम भी प्राचीन परम्परानुसार ही निर्धारित किया गया है ।
- इन उपांगों को दयानंदीय मतानुसार कल्प अङ्ग में ही सम्मलित किया गया है।
- इसकी विस्तार से व्याख्या के लिए ‘षड दर्शन समन्वय’ देखिये ।
पात्रता
- आयु – १८ वर्ष से अधिक,
- योग्यता – स्नातक या समकक्ष
- दो भक्तियाँ = ईश्वर भक्ति व राष्ट्र भक्ति
- दो निष्ठाएं = गुरु व गुरुकुल के प्रति निष्ठा
- दो गुण = अध्ययन की तीव्र इच्छा व तपस्वी पुरुषार्थी स्वभाव
- यह वैदिक गुरुकुल मुख्यतया प्राचीन वैदिक अध्यात्म विद्या को जानने का अध्यात्मिक प्रकल्प है ।
- अतः प्रत्येक विद्यार्थी से प्रतिदिन न्यूनतम 2 घंटे ध्यान एवं 6 घंटे मौन की अपेक्षा भी की जाती है ।
- इसके अतिरिक्त प्रत्येक छात्र से आश्रम की दिनचर्या के अनुशासन में चलने की अपेक्षा की जाती है ।
- उपांगों के अध्ययन का यह प्राचीन क्रम वैदिक गुरुकुल में ही पढ़ाया जाता है ।
- इसके प्रवेश सभी के लिए खुले हैं किंतु अग्रिम वर्षों के पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए पूर्व का अध्ययन आवश्यक है ।
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प्रकाशित ग्रन्थ व आगामी प्रकाशन
- षड् दर्शन समन्वय
- अथ गुरुमंत्र – गायत्री मन्त्र की प्रमाणिक व्याख्या
- वैदिक दर्शन व सृष्टि प्रक्रिया
- आओ ध्यान करें – वैदिक योग साधना – भाग १
- पातञ्जल योग सूत्र – चित्त प्रसादिनी व्याख्या
- सद्गुरु विवेचनम्
- अष्टाध्यायी लघुउपदेश
- विज्ञान वृत्ति – अष्टाध्यायी की वैज्ञानिक व्याख्या
- वैदिक ऋषि दर्शन
- वैदिक सृष्टि प्रक्रिया व आधुनिक वैज्ञानिक परिकल्पनाएँ
- वेदाङ्ग परिचय
- वैदिक दर्शन (१-६) षड् दर्शनों का भाष्य
- मानव निर्माण की १६ सीढियाँ – १६ संस्कारों की वैज्ञानिक व दार्शनिक व्याख्या
- पांच महान कर्तव्य – पञ्चमहायज्ञ विमर्श
- आधुनिक समय में देवों का ब्रह्मचर्य आचरण
- श्रद्धा – तर्क व दृष्टिकोण भेद से समन्वय तक
- वैदिक भौतिक विज्ञान

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