Samadhi

समाधि योग

वैदिक समाधि योग साधना क्या है ?

ईश्वर के प्रति उत्पन्न भावों, ज्ञान और समर्पण से समाधि की योग्ग्यता उत्पन्न होती है । धारणा, ध्यान, समाधि के समन्वय स्वरूप संयम है

प्रक्रिया

एक ही विषय पर धारणा, ध्यान, समाधि का क्रियात्मक अभ्यास कराया जाता है।

लाभ
अष्टांग योग व्यवहार काल में आने से योगी के सदृश जीवन हो जाता है। पाप पुण्य फल वाले कर्मों के छूट निष्काम कर्म में प्रवृत होता है।
मन व बुद्धि की स्थिरता व एकाग्रता विशेष होती है। संस्कार जाल को समझ उससे छूटने लगता है । दुःख नही सताते हैं। समाधि के अभ्यास से बुद्धि अति सूक्ष्म व तीव्र हो जाती है।
संयम के अभ्यास द्वारा साधक अनेक विद्या जानने वाला होता है।
बंधन व उनके कारणों को जान पाता है। दुख के मूल का साक्षात्कार होता है। चित्त पर आत्मा का वशीकार होता है और चित्त के असीम स्वरूप को जान उसका पूर्ण उपयोग कर पाते हैं।

संयम के वास्तविक स्वरूप को जान उसका विभिन्न आयामों में प्रयोग कर पाता है।

अभ्यास हो जाने पर छोटे से बड़े विषयों पर अधिकार हो जाता है

अनादि कर्म फल, जीवन मृत्यु के कारण इसमें स्पष्ट होते है

नित्य व अनित्य पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है

आवश्यक शर्तें
इस (वैदिक समाधि योग साधना) अभ्यास के लिए क्रियायोग में निपुणता आवश्यक व अनिवार्य है।

Overview

योग विद्या का मूल स्त्रोत क्या है ?

  • योग विद्या का मूल स्रोत वेद है
  • वेद के आधार पर ही विभिन्न शास्त्रकारों ने अपने अपने ढंग से योग विद्या का वर्णन किया है
  • आधुनिक काल में महर्षि पतंजलि ने योग को दर्शन के रूप में क्रमबद्ध कर योग दर्शन का निर्माण किया

योग क्या है ?

  • योग: चित्तवृत्तिनिरोध: अर्थात चित्त की वृत्तियों को पूर्णत: रोकना योग है

मन की वृत्तियाँ कौन-कौन सी हैं?
Accordion Content
उन्हें रोकने के क्या उपाय है ?

  • योगाभ्यासी व्यक्ति ही इन वृत्तियों को समझकर मन में उठने वाले विभिन्न नकारात्मक भावों (इर्षा, द्वेष, अहंकार, लोभ, मोह आदि) को रोक पाने में सक्षम होता है
  • ईश्वर की सहायता से ही इन भावों का समाधान संभव है
  • इन कुसंस्कारों को हटाने की विस्तृत प्रक्रिया योग दर्शन में प्राप्त होती है

Benefits

जब तक इन्द्रियाँ बहिर्मुखी होती हैं, तब तक परमेश्वर का ध्यान कदापि सम्भव नहीं है।
इसलिए ईश्वर की सच्ची भक्ति के लिये योग-दर्शन एक अनुपम शास्त्र है।

पाठ्यक्रम

प्रथम समाधि पाद
द्वितीय साधन पाद
तृतीय विभूति पाद
चतुर्थ कैवल्य पाद
प्रथम समाधि पाद

  • योग की परिभाषा/लक्षण एवं उसका फल
  • चित्त वृत्तियों का स्वरुप
  • चित्त वृत्ति निरोध के उपाय
  • योगियों के लक्षण/स्तर
  • ईश्वर प्रणिधान
  • चित्त विक्षेप
  • चित्त प्रसादन
  • समापत्ति
  • अध्यात्म प्रसाद से सर्व निरोध

द्वितीय साधन पाद

  • क्रियायोग और उसके लाभ
  • पञ्च क्लेश
  • क्लेश वृत्ति-हेयत्व व कारण
  • दृश्य और दृष्टा की परभाषा
  • संयोग; उसका कारण व अभाव का फल
  • अष्टांग योग
  • वितर्क का स्वरुप
  • यम नियम के फल
  • आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार

तृतीय विभूति पाद

  • समाधि व संयम
  • चित्त के परिणाम व उनके संयम
  • शब्दार्थ संस्कार प्रत्यय संयम
  • काया कर्म भाव
  • ब्रह्ममाण्डिय व शरीरस्थ संयम
  • पुरुषज्ञान व विभूतियों की विघ्नस्वरूप्ता, बंधन शिथिलता
  • प्राण व भूतेंद्रियों पर संयम
  • अस्मिता, विवेक व कैवल्य ज्ञान

चतुर्थ कैवल्य पाद

  • चित्त के भेद
  • कर्माशय, चित्त वासनाएँ व निवारण
  • चित्त का काल व परिणाम का सम्बन्ध
  • (४.१६-२२)
  • (४.२३-२७)
  • धर्ममेघ समाधि
  • चितिशक्ति की स्वरुप प्रतिष्ठा


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